रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि :-
“सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका” – अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं। वैसे तो रुद्राभिषेक किसी भी दिन किया जा सकता है परन्तु त्रियोदशी तिथि,प्रदोष काल और सोमवार को इसको करना परम कल्याण कारी है | श्रावण मास में किसी भी दिन किया गया रुद्राभिषेक अद्भुत व् शीघ्र फल प्रदान करने वाला होता है | एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।
भगवान शिव अर्थात रुद्र की महिमा का गान करने वाले इस ग्रंथ में दस अध्याय हैं लेकिन चूंकि इसके आठ अध्यायों में भगवान शिव की महिमा का वर्णन किया गया है इसलिये इसका नाम रुद्राष्टाध्यायी ही रखा गया है।
शेष दो अध्याय को शांत्यधाय और स्वस्ति प्रार्थनाध्याय के नाम से जाना जाता है।
रुद्राभिषेक करते हुए इन सम्पूर्ण 10 अध्यायों का पाठ रूपक या षडंग पाठ कहा जाता है।यदि षडंग पाठ में पांचवें और आठवें अध्याय के नमक चमक पाठ विधि यानि ग्यारह पुनरावृति पाठ को एकादशिनि रुद्री पाठ कहते हैं। पांचवें अध्याय में “नमः” शब्द अधिक प्रयोग होने से इस अध्याय का नाम नमक और आठवें अध्याय में “चमे” शब्द अधिक प्रयोग होने से इस अध्याय का नाम चमक प्रचलित हुआ। दोनों पांचवें और आठवें अध्याय पनरावृति पाठ नमक चमक पाठ के नाम से प्रसिद्ध हैं। वहीं लघु रुद्र के ग्यारह आवृति पाठ को महारुद्र तो महारुद्र के ग्यारह आवृति पाठ को अतिरुद्र कहा जाता है।
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